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Showing posts from February, 2018

नगर पालिका परिषद, बीरगॉव रायपुर छत्तीसगढ़

नगर पालिका परिषद, बीरगॉव  का गठन 06 ग्रामों क्रमशः उरला (आश्रित ग्राम बोरझरा सहित),अछोली,रांवांभांठा,उरकुरा,बीरगॉव एवं सरोरा को मिलाकर किया गया था। बीरगॉव , छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से रायपुर बिलासपुर मुुख्य मार्ग पर रायपुर से लगभग 12 कि.मी. एवं नगर निगम, रायपुर क्षेत्र से लगा हुआ औधोगिक नगरी है। बीरगॉव नगर को नगर पालिका का दर्जा 17 जनवरी 2003 से प्रदान किया गया था। बीरगॉव नगर पालिका क्षेत्र कुल 30 वार्डो में विभाजित था जिसे दिनांक 11 सितम्बर 2009 को राज्य शासन द्वारा सीमा वृद्धि कर वार्डों के परिसीमन उपरांत 35 वार्ड तथा वर्ष 2014 में पुनः परिसीमन उपरांत 40 वार्ड बनाया गया है। इस निकाय का कुल क्षेत्रफल 36.85256 वर्ग कि.मी. है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार जनसंख्या 96294 है। वर्तमान जनसंख्या 108491 है। छ.ग. राजपत्र (असाधारण) नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, मंत्रालय महानदी भवन, नया रायपुर की अधिसूचना दिनांक 22 जुलार्इ 2014 क्रं. एफ1-11201418 अनुसार पूर्व अधिसूचित नगरपालिका परिषद,बीरगॉव के स्थान पर नगर पालिक निगम, बीरगॉव का गठन किया गया है। पूर्व में नगर पालिका परिषद, बीरगॉव की सीम

छत्तीसगढ़ की हस्तशिल्प एवं धातुकला

छत्तीसगढ़ की हस्तशिल्प एवं धातुकला छत्तीसगढ़ अंचल भारतवर्ष में हस्तकला धातुकला के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहाँ के शिल्पी अपनी अनुपम कलाकृति के कारण विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ की आदिवासी क्षेत्रों में विशेष कर बस्तर आर्ट पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ में काष्ठ कला तथा धातुकला दोनों का निर्माण यहाँ के शिल्पियों द्वारा किया जाता हैं। इस पारम्परिक कला को आज भी जीवित रखे हैं। यहीं नहीं अपितु मूर्तिकला मिट्टी की कला तथा धातु की कला एवं काष्ठ कला की विविध स्वरूप छत्तीसगढ़ में देखने को मिलती हैं। देव प्रतिमाओं से लेकर वन्य पशुओं तक, वृक्षों से लेकर फूल-पत्तियों तक इनके विषय रहे हैं। छत्तीसगढ़ की हस्तकला एवं शिल्पकला पूरे राज्य को गौरवान्वित करती हैं।

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सवाल जवाब

छत्तीसगढ़ की भाषा

छत्तीसगढ़ी भाषा बोली  छत्तीसगढ़ की भाषा है छत्तीसगढ़ी। पर क्या छत्तीसगढ़ी पूरे छत्तीसगढ़ में एक ही बोली के रुप में बोली जाती है? हम पूरे छत्तीसगढ़ में बोलीगत विभेद पाते हैं। डॉ. सत्यभामा आडिल अपने "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य" (विकल्प प्रकाशन, रायपुर,  2002  , प-. 7  ) में कहते हैं कि यह बोलीगत विभेद दो आधारों - जातिगत एवं भौगोलिक सीमाओं के आधार विवेचित किये जा सकते हैं। इसी आधार पर उन्होंने छत्तीसगढ़ की बोलियों का निर्धारण निश्चयन किया है - छत्तीसगढ़ी बोली बहुत ही मधुर है। इस बोली में एक अपनापन है जो हम महसूस कर सकते हैं। हिन्दी जानने वालों को छत्तीसगढ़ी बोली समझने में तकलीफ नहीं होती - "उसने कहा" को छत्तीसगढ़ी में कहते हैं "कहीस","मेरा" को कहते हैं "मोर", "हमारा" को "हमार", "तुम्हारा" को "तोर" और बहुवचन में "तुम्हार"। छत्तीसगढ़ी - रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में जो बोली सुनाई देती है वह है छत्तीसगढ़ी। खल्टाही - छत्तीसगढ़ की यह बोली रायगढ़ जिले के कुछ हिस्सों में बोली जाती

छत्तीसगढ़की भूतिया जगह

छत्तीसगढ़की भूतिया जगह             https://youtu.be/O0Sy-hJ8o4A

छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक संदर्भ

छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक संदर्भ छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक संदर्भह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री, सन 639 ई० में भारतवर्ष जब आये तो वे छत्तीसगढ़ में भी पधारे थे। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। ह्मवेनसांग सिरपुर में रहे थे कुछ दिन। वे अपने ग्रन्थ में लिखते हैं कि गौतम बुद्ध सिरपुर में आकर तीन महीने रहे थे। इसके बारे में बहुत ही रोचक एक कहानी प्रचलित है - उस समय सिरपुर में विजयस नाम के वीर राजा राज्य करते थे। एक बार की बात है, श्रीवस्ती के राजा प्रसेनजित ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण कर दिया, मगर युद्ध में प्रसेनजित ही हारने लगे थे। जैसे ही वे हारने लगे, उन्होने गौतम बुद्ध के पास पँहुचकर उनसे विनती की कि वे दोनों राजाओं में संधि करवा दें। विजयस के पास जब संधि की वार्ता पहुँची तो उन्होंने कहा कि यह तब हो सकता है जब गौतम बुद्ध सिरपुर आयें और यहाँ आकर कुछ महीने रहें। गौतम बुद्ध इसी कारण सिरपुर में तीन महीने तक रहे थे। बोधिसत्व नागार्जुन, बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक, का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था, नागार्जुन उस समय थे जब छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की

Chattisgarh gk tevhar

छत्तीसगढ़ में फसल एवं त्योहार बैसाख :  अक्ती इसी दिन से नई फसल वर्ष की शुरुआत होती है। बीज की तैयारी की जाती है। बीज निकालना और एक-दूसरे को बीज आदान-प्रदान करना। जेठ :  आ गया जेठ। इस महीने में खेत की सफाई की जाती है। उसके बाद धान बोवाई की जाती है। आषाढ़-साव :  पोला - इस त्योहार को भी अन्न गर्भ पूजा के रुप में मनाते हैं। मिट्टी के बैलों को पूजा चढ़ाते हैं। कुवार :  नवा खाई - इस महीने में नई फसल की कटाई की जाती है। नए अन्न की पूजा की जाता है। और उसके बाद ही उसेखाया जाता है। इसीलिये इसे कहते हैं, "नवा खाई"। कार्तिक :  गौरा गौरी अगहन :  जेठौनी - धान की मिंजाई करते हैं इस महीने में। गाँव के सभी लोग घर से धान की बाली लाते हैं और गाँव के देवता को चढ़ाते हैं। इसके बाद ही मिंजाई आरम्भ करते हैं। पूष-माघ :  छेर छेरा - धान की मिंजाई खत्म होने के बाद गाँव के बच्चे घर-घर जाते हैं और छेर छेरा गीत गा-गाकर अनाज बीज मांग कर इकट्ठे करते हैं। कटाई होती है उतेरा फसल की। माघ-फागुन :  होली - होली का त्योहार मनाते हैं। उतेरा फसल मिंजाई करते हैं। चैत :  चैतरई - इस वक्त खेत की मरम्मत करते

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छत्तीसगढ़ अंचल भारतवर्ष में हस्तकला धातुकला के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहाँ के शिल्पी अपनी अनुपम कलाकृति के कारण विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ की आदिवासी क्षेत्रों में विशेष कर बस्तर आर्ट पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ में काष्ठ कला तथा धातुकला दोनों का निर्माण यहाँ के शिल्पियों द्वारा किया जाता हैं। इस पारम्परिक कला को आज भी जीवित रखे हैं। यहीं नहीं अपितु मूर्तिकला मिट्टी की कला तथा धातु की कला एवं काष्ठ कला की विविध स्वरूप छत्तीसगढ़ में देखने को मिलती हैं। देव प्रतिमाओं से लेकर वन्य पशुओं तक, वृक्षों से लेकर फूल-पत्तियों तक इनके विषय रहे हैं। छत्तीसगढ़ की हस्तकला एवं शिल्पकला पूरे राज्य को गौरवान्वित करती हैं।

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नृत्य-गान :   देवारों की प्रामणिक पहचान उनका सांस्कृतिक ज्ञान हैं। जन-सामान्य में भी उनके इसी रुप की सर्वाधिक ख्याति हैं। इन्हें प्रतिष्ठा दिलवाने में गायन, वादन एवं नृत्य पर इनका अचूक अधिका माना गया हैं। इस जन्म-जात और असाधारण कला-ज्ञान के चलते हर हमेशा से देवार जीवंत बने हुए हैं। जीवन के प्रत्येक पल में गीत नृत्य की खनक दीवारों का जातीय गुण हैं। इनकी इसी विशेषता के दर्शन रोजमर्रा की दिनचर्या में सायंकाल के समय में डेरा में आसानी से कर सकते हैं। जीविकोपार्जन का एक ठोस माध्यम तो यह हैं ही, वाद्य, गायन एवं नर्तन इन तीन बिंदुओं के सहारे भी इनकी विशेषतायें समझी जा सकती है। सांगीतक भेद को आधार मानें तो रायपुरिहा और रतनपुरिहा देवारों की अलग-अलग पहचान हैं। जो इन्हें समझने में भी सहायक बनते हैं।

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छत्तीसगढ़ के पर्व  होली :  जातीय उत्साह की अभिव्यक्ति का एक और उम्दा माध्यम है, छत्तीसगढ़ के अपने तीज-त्यौहार हैं। हिन्दुओं के त्यौहार ही प्रायः मानते हैं। अलबत्ता कुछेक त्यौहार जरुर ऐसे होते हैं जो खास महत्व लिए रहते हैं। इन्हीं में फागुन की मस्ती में डूबा होली विशेष त्यौहार है। होली देवारों में काफी उमंग-हड़दंग के संग मनती है। इस दिन समूचा कुनबा महुये की मदमस्ती में मस्त हो जाता है। मांदर, ढोल मंजीरे के संग गीत भी गाये जाते है। होली पर किसी चिन्हित स्थान पर एकत्र होने का चलन है। इस रोज शुभ मुहुर्त देखकर बैगा अनुष्ठान करना है और उसकी अनुमति के उपरांत प्रतीकात्मक होली जलाई जाती है। वृद्ध-जवान और बच्चा मंडली भी मदिरा पीकर लोट-पोट होती है।

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              छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक संदर्भ ह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री, सन 639 ई० में भारतवर्ष जब आये तो वे छत्तीसगढ़ में भी पधारे थे। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। ह्मवेनसांग सिरपुर में रहे थे कुछ दिन। वे अपने ग्रन्थ में लिखते हैं कि गौतम बुद्ध सिरपुर में आकर तीन महीने रहे थे। इसके बारे में बहुत ही रोचक एक कहानी प्रचलित है - उस समय सिरपुर में विजयस नाम के वीर राजा राज्य करते थे। एक बार की बात है, श्रीवस्ती के राजा प्रसेनजित ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण कर दिया, मगर युद्ध में प्रसेनजित ही हारने लगे थे। जैसे ही वे हारने लगे, उन्होने गौतम बुद्ध के पास पँहुचकर उनसे विनती की कि वे दोनों राजाओं में संधि करवा दें। विजयस के पास जब संधि की वार्ता पहुँची तो उन्होंने कहा कि यह तब हो सकता है जब गौतम बुद्ध सिरपुर आयें और यहाँ आकर कुछ महीने रहें। गौतम बुद्ध इसी कारण सिरपुर में तीन महीने तक रहे थे। बोधिसत्व नागार्जुन, बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक, का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था, नागार्जुन उस समय थे जब छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा क

Jai . Maa shakti

Ma shakti
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MOR Raipur CG  my first post               MOR Raipur sundar Raipur                                 जय हिंदी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा हम बुलबुले हैं इसके यह        गुलसिता हमारा सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा                                  मोर रायपुर