छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक संदर्भ
- ह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री, सन 639 ई० में भारतवर्ष जब आये तो वे छत्तीसगढ़ में भी पधारे थे। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। ह्मवेनसांग सिरपुर में रहे थे कुछ दिन। वे अपने ग्रन्थ में लिखते हैं कि गौतम बुद्ध सिरपुर में आकर तीन महीने रहे थे। इसके बारे में बहुत ही रोचक एक कहानी प्रचलित है - उस समय सिरपुर में विजयस नाम के वीर राजा राज्य करते थे। एक बार की बात है, श्रीवस्ती के राजा प्रसेनजित ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण कर दिया, मगर युद्ध में प्रसेनजित ही हारने लगे थे। जैसे ही वे हारने लगे, उन्होने गौतम बुद्ध के पास पँहुचकर उनसे विनती की कि वे दोनों राजाओं में संधि करवा दें। विजयस के पास जब संधि की वार्ता पहुँची तो उन्होंने कहा कि यह तब हो सकता है जब गौतम बुद्ध सिरपुर आयें और यहाँ आकर कुछ महीने रहें। गौतम बुद्ध इसी कारण सिरपुर में तीन महीने तक रहे थे।
- बोधिसत्व नागार्जुन, बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक, का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था, नागार्जुन उस समय थे जब छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। नागार्जुन और सातवाहन राजा में गहरी दोस्ती थी। ये पहली शताब्दी की बात है। पहली शताब्दी में नागार्जुन का जन्म सुन्दराभूति नदी के पास स्थित महाबालुका ग्राम में हुआ था। हरि ठाकुर अपनी पुस्तक ""छत्तीसगढ़ गाथा'' (रुपान्तर लेखमाला-१) में कहते हैं कि सुन्दराभूति नदी को आजकल सोन्टुर नदी कहते हैं और महाबालुका ग्राम आज बारुका कहलाता है। नागार्जुन ने अपनी ज़िन्दगी में तीस ग्रन्थ लिखे। उन्होने एक आयुर्वेदिक ग्रंथ की रचना की थी जिसका नाम है, ""रस-रत्नाकर''। नागार्जुन एक महान रसायन शास्री भी थे, उनका आश्रम एक प्रसिद्ध केन्द्र था जहाँ देश-विदेश से छात्र आते थे पढ़ने के लिये। ऐसा कहते हैे कि बोधिसत्व नागार्जुन ने श्रीपर्वत पर 12 वर्षों तक तपस्या की थी। ये पर्वत स्थित हैं कोरापुट जिले में जो बस्तर के नज़दीक है। नागार्जुन बाद में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलगुरु निर्वाचित हुए थे। श्रीपुर में और एक विद्वान रहते थे - आचार्य बुद्ध घोष। वे बौद्ध धर्म के महान विद्वान थे। श्रीपुर में एक शिलालेख मिला है जिसमें उनका नाम है। आचार्य बुद्ध घोष बाद में श्रीलंका चले गये थे। वे बहुत अच्छे कवि भी थे। उन्होंने कई ग्रन्थ लिखे।
- इतिहास के कई अध्येताओं जैसे - डॉ० हीरालाल शुक्ल, डॉ० कृष्णदेव सारस्वत, स्व. गंगाधर सामंत कहते हैं कि महाकवि कालिदास का जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ था। अध्येताओं के अनुसार कालिदास ने ''ॠतुसंहार'' उनका पहला ग्रन्थ, भी छत्तीसगढ़ में अपने रहने के समय लिखा था।
- कवि भाष्कर पाँचवीं शताब्दी में हुए थे। उनकी रचना एक शिलालेख में सुरक्षित है। यह रचना नागरी लिपि का प्रथम उदाहरण है। उस समय देश में ब्राह्मी लिपि का चलन था।
- छत्तीसगढ़, जो दक्षिण-कौसल के नाम से जाना जाता था, यहाँ मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। इस क्षेत्र का इतिहास स्वालम्बी इसीलिए नहीं है क्योंकि कुछ शासकों की राजधानियाँ कहीं और थीं।
Comments
Post a Comment
Thanks for comment